इंद्रप्रस्थ: भविष्य का ऐतिहासिक
राज्य
@ सुनील सत्यम
देश के प्राचीनतम राज्यों में
से यदि किसी एक ऐसे राज्य का उदाहरण लिया जाए जो राजनैतिक रूप से आज अस्तित्व मे नही
है लेकिन उसका इतिहास हजारों वर्ष पुराना है, तो उस राज्य का सही
नाम होगा इंद्रप्रस्थ। इंद्रप्रस्थ एक भौगोलिक वास्तविकता है जिसे आज नही तो कल हम
व्यावहारिक रूप मे अस्तित्व मे आते हुए देखेंगे। महाभारत कालीन भरत वंश की राजधानी
हस्तीनापुर थी जो वर्तमान मे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद के अंतर्गत स्थित है।वास्तव
में महाभारत काल में भरत राजवंश में कुरु-पांचाल दोनों शामिल थे। इनमे से कुरु राज्य
(महाजनपद) आधुनिक मेरठ,दिल्ली तथा हरियाणा के थानेश्वर के भू-भागों
मे स्थित था। इसकी राजधानी इन्द्रप्रस्थ (वर्तमान दिल्ली) थी। हस्तीनापुर नगर भी इसी
राज्य में स्थित था। जातक ग्रन्थों के अनुसार इस नगर की परिधि दो हजार मील (लगभग 3600
वर्ग किलोमीटर) थी। बुद्ध के समय यहाँ का राजा कौरव्य बताया गया है। कुरु देश के लोग
प्राचीन काल से ही अपनी बुद्धि एवं बल के लिए प्रसिद्ध थे। पहले कुरु एक राजतंत्र था
किन्तु कालांतर मे यहाँ गणतन्त्र की स्थापना की गई। पांचाल महाजनपद, आधुनिक रूहेलखण्ड के बरेली, बदायूं तथा फरुर्खाबाद के
जिलों से मिलकर बना था। पांचाल के दो भाग थे- उत्तरी भाग-राजधानी अहिछत्र(बरेली मे
स्थित रामनगर), दक्षिणी पांचाल-राजधानी कांपिल्य( फरुर्खाबाद
स्थित कंपिल) प्रसिद्द नगर कान्यकुब्ज भी इसी के अंतर्गत आता था। छ्ठी सदी ईसा पूर्व
कुरु तथा पांचाल का एक संघ बन गया।
इंद्रप्रस्थ: एक भौगोलिक वास्तविकता
इंद्रप्रस्थ आज एक ऐतिहासिक राज्य होने के साथ
साथ भौगोलिक वास्तविकता भी है। क्योंकि प्राचीन कुरु राज्य का प्रसिद्ध नगर थानेश्वर
वर्तमान में हरियाणा राज्य में स्थित है अतः यहाँ वर्णित इंद्रप्रस्थ राज्य में यह
शामिल नही है। लेख में दिये गए मानचित्र में मैंने महाभारत कालीन इंद्रप्रस्थ को चिन्हित
करने का प्रयास किया है। क्योंकि कुरु राज्य की राजधानी इंद्रप्रस्थ थी अतः कुरु राज्य
के थानेश्वर के आसपास के क्षेत्र के वर्तमान हरियाणा मे शामिल होने के कारण कुरु प्रदेश
नाम व्यवहारिक नही है। इसलिए दिल्ली सहित प्राचीन राज्य कुरु के वर्तमान भौगोलिक क्षेत्र
को इंद्रप्रस्थ के रूप में पहचानना ही तार्किक होगा। महाभारत कालीन इस राज्य मे वर्तमान
में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के अतिरिक्त पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 13 जिले
शामिल है। इन्द्रप्रस्थ
राज्य में कुल 21 लोकसभा
क्षेत्र शामिल है
1. सहारनपुर 2 कैराना 3 मुज़फ्फरनगर 4 बिजनौर 5 नगीना 6 मुरादाबाद 7 रामपुर 8 संभल 9 अमरोहा 10 मेरठ 11 बागपत 12 गाज़ियाबाद 13 गौतमबुद्धनगर 14 बुलंदशहर
उपरोक्त के अतिरिक्त 7 लोकसभा क्षेत्र दिल्ली में
स्थित है. इस
प्रकार इन्द्रप्रस्थ राज्य के देश की संसद में 21 सांसद मौजूद रहेंगे. वर्तमान में इन्द्रप्रस्थ
राज्य में कुल 131 विधान
सभा क्षेत्र शामिल है जिनमे 70
दिल्ली में एवं शेष 61 पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 13 जिलों में शामिल है. दिल्ली सहित इंद्रप्रस्थ राज्य का कुल क्षेत्रफल
29811 वर्ग किलोमीटर तथा जनसंख्या घनत्व 2012 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। ये जिले
इस प्रकार हैं:-
गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, अमरोहा, बागपत, बिजनौर, बुलंदशहर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, सहारनपुर, शामली, हापुड़ तथा संभल।
इन्द्रप्रस्थ
राज्य की जनसँख्या ( 2011 की
जनगणना के अनुसार कुल 4,92,36,107.00
है। जिलेवार जनसँख्या निम्नप्रकार है :
सहारनपुर
3464228.00, मुज़फ्फरनगर(+शामली)
4138605.00, बिजनौर 3683896.00, मुरादाबाद(+संभल) 4773138.00, अमरोहा 1838771.00, मेरठ 3447405.00, बागपत 1302156.00, गाज़ियाबाद(+हापुड़)4661452.00, गौतमबुद्धनगर 1674714.00, बुलंदशहर 3498507.00 और दिल्ली 16753235.00
दिल्ली एक केंद्र
शासित प्रदेश है जिसे राष्ट्रीय राजधानी प्रदेश के रूप में एक नियोजन प्रदेश बनाया
गया। लंबे अरसे से दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग भी समय समय पर उठती
रही है। जो की व्यवहरिक रूप मे संभव नही है क्योंकि दिल्ली में देश की संसद सहित केंद्र
सरकार के अनेक प्रतिष्ठान स्थित हैं। ऐसे में क्षेत्रीय सीमा का मामला पेचीदा हो सकता
है। दिल्ली पर देश की राजधानी होने के कारण जननांकीय दबाव बहुत ज्यादा है। देशभर से
प्रतिदिन हजारों लोग रोजगार की तलाश में दिल्ली आते है तथा उनमे से अधिकांश दिल्ली
में ही बस जाते हैं। उनमे से कुछ को अस्थायी/स्थायी रोजगार मिल जाता है लेकिन काफी
लोग रोजगार न मिलने पर अपना छोटा मोटा काम जैसे पानी की रेहड़ी लगाना, चाय,सब्जी आदि बेचने का कम करने लग जाते हैं।पर्यावरणीय
कारणों से लघु एवं माध्यम उधयोग भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के चलते दिल्ली
से बाहर कर दिये गए है। इस प्रकार दिल्ली के संसाधनों पर आवश्यकता से अधिक दबाव है
तथा इसके विस्तार के लिए पर्याप्त भौगोलिक क्षेत्र का अभाव है।यह आश्चर्यजनक है कि
उपरोक्त वर्णित 13 जिलों मे से सिर्फ 5 ही जिले ऐसे है जिनका अपना क्षेत्रफल दिल्ली
के कुल क्षेत्रफल 1484 वर्ग किलोमीटर से कम हैं। शेष सभी जिले दिल्ली के कुल क्षेत्रफल
के दोगुने से लेकर तिगुना तक है। जबकि जनसंख्या के मामले में इनमे से कोई भी जिला दिल्ली
के मुक़ाबले कहीं नहीं ठहरता है। दिल्ली को विस्तार के लिए स्थान चाहिए और राष्ट्रीय
राजधानी क्षेत्र मे शामिल इस क्षेत्र को दिल्ली के संसाधन ताकि यह क्षेत्र विकास के
मामले मे देश के प्रदेशों को ही नहीं बल्कि विश्व के कई विकसित देशों को पीछे छोड़ सके।
इंद्रप्रस्थ
राज्य बनाया जाना इसलिए भी व्यवहरिक के मितव्ययी होगा कि इसके लिए सिर्फ दिल्ली को
राजधानी बनाना होगा। इसके पास पहले से ही उच्च न्यायालय, विधान सभा, सचिवालय एवं एक पूर्ण राज्य के लिए आवश्यक
सभी आधारभूत संरचना पहले से ही उपलब्ध है।
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देश में भाषाई राज्यों कि मांग के ज़ोर पकड़ने पर 22 दिसम्बर 1953
में
न्यायाधीश फजल अली की अध्यक्षता में प्रथम राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया
गया। इस
आयोग के तीन सदस्य थे - न्यायमूर्ति फजल अली, हृदयनाथ कुंजरू और केएम पाणिक्कर । राज्य पुनर्गठन आयोग ने 30 सितंबर 1955
को
अपनी रिपोर्ट सौंपी। आयोग ने राष्ट्रीय एकता, प्रशासनिक और वित्तीय
व्यवहार्यता, आर्थिक विकास, अल्पसंख्यक हितों की रक्षा तथा भाषा को राज्यों के पुनर्गठन का आधार बनाया।लेकिन
भाषा राज्य पुनर्गठन का प्रमुख आधार थी। सरकार ने इसकी
संस्तुतियों को कुछ सुधार के साथ मंजूर कर लिया। जिसके बाद 1956
में
राज्य पुनर्गठन अधिनियम संसद ने पास किया। देश को 14 राज्य तथा नौ केंद्र शासित प्रदेशों
मे बांटा गया। पुनः 1960
में नए
राज्यों कि मांग उठी और पुनर्गठन का दूसरा दौर चला। 1960 में बम्बई राज्य को विभाजित करके महाराष्ट्र और गुजरात का गठन हुआ। 1963 में नगालैंड गठित हुआ। 1966 में पंजाब का पुनर्गठन हुआ और उसे पंजाब, हरियाणाऔर हिमाचल प्रदेश में तोड़ दिया गया। 1972
में मेघालय, मणिपुर और त्रिपुरा बनाए गए। 1987
में मिजोरम का गठन किया गया और केन्द्र शासित राज्य अरूणाचल प्रदेश और गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया। वर्ष 2000
में उत्तराखण्ड, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ अस्तित्व में आए।हाल
ही मे तेलंगाना देश का 299 वां राज्य बना।
वास्तव में
देश में राज्य पुनर्गठन का आधार भाषाई नही हो सकता है। राज्य का निर्माण प्रशासनिक
क्षमता मे वृद्धि के लिए होना चाहिए। देश के अलग अलग हिस्सों में अभी भी कई राज्यों
की मांग जारी है। अलग गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर हाल ही में पश्चिम बंगाल में
उग्र प्रदर्शन हुए हैं। कुर्ग, विदर्भ,
बोडोलैंड, रूहेलखण्ड, बुंदेलखंड, पूर्वाञ्चल, जम्मू, लद्दाख एवं
इंद्रप्रस्थ राज्यों की मांग अभी भी समय समय पर ज़ोर पकड़ी रहती है।
ऐसे मे आवश्यक
है कि द्वितीय राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन करके देश को 50 प्रशासनिक राज्यों मे पुनर्गठित
किया जाए। अब देश मे केंद्रशासित क्षेत्रों कि व्यवहरिक अवश्यकता नही है अतः इनका सम्मिलन
निकटवर्ती राज्यों में कर दिया जाए।
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