हरित प्रदेश का असामयिक एवं बेसुरा , अतार्किक राग अलापने वाले अजीत सिंह की इस समय अलग प्रदेश के मसले पर चुप्पी आश्चर्य चकित करने वाली बिलकुल नहीं है. कुछ लोगों को आश्चर्य हो सकता है लेकिन इसमे आश्चर्य की कोई बात नहीं है . हरित प्रदेश का मसाला अजीत के लिए एक चुनावी मुद्दा मात्र है..इसकी अवधारणा तक उनकी नहीं.सबसे पहले यह नाम पूर्व विधायक निर्भय पल शर्मा ने किया था..बाद में यह पूरा मसाला ही अजीत सिंह ने हथिया लिया.
अब जबकि उत्तर प्रदेश में २०१२ का विधान सभा चुनाव सिर पर है और अजीत सिंह ने इस चुनावी मसले पर चुप्पी साधी हुई है. ऐसा अकारण नहीं है..वास्तव में सूत्रों के अनुसार अजीत सिंह चुनावी तालमेल के लिए कांग्रेस के संपर्क में है..यहाँ तक की उनकी पार्टी का, अजीत को कांग्रेस में सम्मान जनक रूप से समाहित होने की शर्त पर, विलय भी हो सकता है..अतः अजीत जी के लिए फायदे का सौदा यही है की वह तात्कालिक रूप से उनकी नजर में लाभरहित इस मुद्दे पर चुप रहे.
मै छोटे राज्यों का पक्षधर हूँ.देश के त्वरित, एवं संतुलित विकास के लिए जरुरी है की इसको ५० छोटे राज्यों में बांटा जाये. दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 13 जिलों को मिलाकर इन्द्रप्रस्थ की स्थापना की जाये..
अब जबकि उत्तर प्रदेश में २०१२ का विधान सभा चुनाव सिर पर है और अजीत सिंह ने इस चुनावी मसले पर चुप्पी साधी हुई है. ऐसा अकारण नहीं है..वास्तव में सूत्रों के अनुसार अजीत सिंह चुनावी तालमेल के लिए कांग्रेस के संपर्क में है..यहाँ तक की उनकी पार्टी का, अजीत को कांग्रेस में सम्मान जनक रूप से समाहित होने की शर्त पर, विलय भी हो सकता है..अतः अजीत जी के लिए फायदे का सौदा यही है की वह तात्कालिक रूप से उनकी नजर में लाभरहित इस मुद्दे पर चुप रहे.
मै छोटे राज्यों का पक्षधर हूँ.देश के त्वरित, एवं संतुलित विकास के लिए जरुरी है की इसको ५० छोटे राज्यों में बांटा जाये. दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 13 जिलों को मिलाकर इन्द्रप्रस्थ की स्थापना की जाये..
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