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दिल्ली (इंद्रप्रस्थ): को चाहिए विस्तार-2

      पहले के अपने एक लेख में मैं इंद्रप्रस्थ राज्य के बारे में विस्तार से वर्णन कर चुका हूं।दिल्ली एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 13 जनपदों को मिलाकर दिल्ली को विस्तार देकर एक नया राज्य इंद्रप्रस्थ के रूप में गठित किया जाना देश के पूर्णतः हित में होगा।इस राज्य के गठन के लिए आवश्यक आधारभूत संरचना पर एक फूटी कौड़ी व्यय करने की आवश्यकता नही होगी। इस राज्य के पास अपनी विधान सभा,सचिवालय,उच्च न्यायालय आदि सबकुछ पहले से उपलब्ध है। संसद,सर्वोच्च न्यायालय,केंद्रीय सचिवालय एवं भारत सरकार के अन्य महत्वपूर्ण उपक्रम सामान्यतः लुटियन ज़ोन में स्थित है,अतः इस क्षेत्र को केंद्र शासित प्रदेश रखते हुए शेष दिल्ली को पश्चिम उत्तर प्रदेश के 13 जिलों में मिलाकर इसे पूर्ण राज्य के रूप में निर्मित करते है हम देश के उन लाखों युवाओं,बेरोजगारों का कल्याण सुनिश्चित कर सकते हैं जो हर वर्ष एक उज्ज्वल एवं स्वर्णिम भविष्य की चाह में अपने अपने राज्यों से दिल्ली आते हैं और यहीं के होकर रह जाते हैं।दिल्ली का कुल वर्तमान क्षेत्रफल 1484 वर्ग किलोमीटर है जबकि इंद्रप्रस्थ के रूप में इसका गठन होने पर इसका कुल क्षेत्रफल 29811 वर्ग किलोमीटर हो जाएगा जो बढ़ते आप्रवासन के कारण दिल्ली के संसाधनों पर पड़ने वाले दबाव के लिए वैक्यूम का कार्य करेगा।ऐसा होने से देश के अलग अलग हिस्सों से प्रवास कर दिल्ली आने वाले प्रवासियों के लिए रोजगार, निवास एवं इंद्रप्रस्थ की शेष जनसँख्या के लिए शिक्षण संस्थानों,मनोरंजन,उद्योग,चिकित्सा संस्थानों आदि के लिए भी पर्याप्त भौगोलिक क्षेत्र उपलब्ध हो सकेगा।पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दशकों से चली आ रही पृथक उच्च न्यायालय की खंडपीठ की मांग का भी स्वतः समाधान हो जाएगा। इंद्रप्रस्थ राज्य देश एवं दुनिया के लिए एक वैश्विक स्तर का शैक्षणिक हब बन सकता है।वर्तमान में इन्द्रप्रस्थ राज्य में निम्नलिखित 19 विश्वविद्यालय कार्यरत है:
दिल्ली
1 गुरु गोविन्द सिंह इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय
2 दिल्ली विश्वविद्यालय
3 जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय
4 डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय
5 दिल्ली प्रोद्योगिक विश्वविद्यालय
6 इंदिरा गांधी नेशनल ओपन विश्वविद्यालय
7 राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय
8 दक्षेश विश्वविद्यालय
मेरठ
9 चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय
10 सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रोद्योगिकी        विश्वविद्यालय
11 स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय
12 शोभित विश्वविद्यालय
गौतमबुद्धनगर (ग्रेटर नॉएडा)
13 गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय
14 शारदा विश्वविद्यालय
15 एमिटी विश्वविद्यालय
16 महामाया प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय
सहारनपुर
17 ग्लोकल विश्वविद्यालय
18 शोभित विश्वविध्यालय
मुरादाबाद
19 तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय।
इनके अतिरिक्त भी अन्य कई अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक एवं शौध संस्थान हैं।कई अन्य संस्थान स्थापना के दौर में हैं।इस प्रकार इंद्रप्रस्थ में विश्व का विशाल शैक्षणिक केंद्र बनने की प्रचुर संभावनाएं है।जो देश को वैश्विक स्तर पर एक प्रतिष्ठित व्यावसायिक शैक्षणिक केंद्र बना सकता है,और यह विदेशी मुद्रा प्राप्ति का एक बड़ा स्रौत बन सकता हैं।मोदी जी की इजरायल यात्रा के दौरान कृषि प्रौद्योगिकी से संबंधित कई महत्वपूर्ण समझौते हुए थे जिन्हें इंद्रप्रस्थ राज्य में वास्तविक धरातल पर उतारने की पूरी क्षमता है क्योंकि यह क्षेत्र प्रथम हरित क्रांति का तो क्षेत्र रहा ही है ,अब द्वितीय हरित क्रांति की प्रयोगशाला भी बन रहा है।
        इस क्षेत्र को दिल्ली के तकनीकी, आर्थिक एवं शैक्षणिक विकास का सीधा लाभ मिलेगा तथा दिल्ली को इन 13 जिलों के भौगोलिक क्षेत्र के साथ साथ यहां की उपजाऊ भूमि,खनिज संसाधन,जल संसाधन,एवं अन्य विकसित आधारभूत संरचना का सीधा लाभ मिलेगा जो इस क्षेत्र के विकास को तीव्र गति से बहुगुणित कर सकता हैं।अतः अविलम्ब इंद्रप्रस्थ का निर्माण व्यापक राष्ट्रहित में हैं।इस क्षेत्र को हम हरित प्रदेश या पश्चिम प्रदेश (जिनकी अवधारणा में दिल्ली शामिल नही है) जैसी अव्यवहारिक एवं अतार्किक भौगोलिक इकाई के रूप में गठित नही कर सकते हैं।क्योंकि ऐसा करना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक हो सकता है।हमे यह नही भूलना चाहिए कि हरित या पश्चिम प्रदेश में कई अति संवेदनशील क्षेत्र है जो आईएसआई एवं अन्य पाकिस्तानी आतंकी संगठनों की स्लीपर सेल के रूप में कुख्यात हैं।यदि इस क्षेत्र में जरा सा भी जनानांकिय सन्तुलन बिगड़ा तो इसकी परिस्थितियां भी कश्मीर, केरल एवं पश्चिम बंगाल जैसी हो सकती हैं।अतः जनानांकिय संतुलन को बनाये रखने के लिए भी इंद्रप्रस्थ का निर्माण तार्किक, व्यवहारिक एवं लोक कल्याणकारी सिद्ध होगा।
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मानस-मंथन
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     आज जबकि देश में एक अदम्य साहसी, दूरदर्शी, एवं विकास के प्रबल प्रवक्ता सरकार के मुखिया हैं. यही सही समय है जब द्वितीय राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया जाए।वर्ष 2017 पृथक गोरखालैंड राज्य निर्माण की मांग को लेकर हिंसक आंदोलन का साक्षी रहा है।गोरखा जनजाति एक प्रबल लड़ाकू एवं राष्ट्रभक्त जनजाति है जो देश की रक्षा में सदैव अग्रणी रही है।पश्चिम बंगाल में उत्तरी बंगाल का दार्जिलिंग पहाड़ी क्षेत्र सामान्यतः गोरखालैंड के नाम से जाना जाता है क्योंकि यह गोरखा बाहुल्य क्षेत्र है।आर्थिक विकास की दौड़ एवं पश्चिम बंगाल की मुख्यधारा की राजनीति में स्वयं को पिछड़ता हुआ देखा गोरखा असंतोष चरम पर पहुंच गया और इस वर्ष उन्होंने एक हिंसक आंदोलन का नेतृत्व किया,यद्यपि उनकी मांग नई नही है।
कार्बी आंगलांग (कूच बिहार) विदर्भ, कुर्ग, बस्तर, सौराष्ट्र, बुन्देलखण्ड, रुहेलखंड, पूर्वांचल, एवं इंद्रप्रस्थ ये पृथक राज्य की मांग के कुछ उदाहरण है। जून 2014 में तेलंगाना राज्य का निर्माण होने के बाद विभिन्न राज्यों में पृथक राज्य निर्माण की मांग को लेकर आंदोलन तेज हो गए।इस प्रकार पृथक राज्यों की मांग एक अंतहीन सिलसिला है।
आज़ादी के 70 वर्षों में लोगों की अपेक्षाएं,आकांक्षाएं बढ़ी है जिन्हें विभिन्न राज्यों की सरकारें पूरा करने में विफल रही हैं। भौगोलिक असमानताओं,क्षेत्रवाद, राजनीतिक सामाजिक भेदभाव के कारण राज्यों के आंतरिक क्षेत्रों में आर्थिक विषमताएं उतपन्न होने से क्षेत्रीय आकांक्षाओं की पूर्ति करने में राज्य असफल साबित हुए हैं।इससे जन असन्तोष उपजा और पृथक राज्यों की मांग का अंतहीन सिलसिला प्रारम्भ हो गया।
  वास्तव में इस समस्या के ऐतिहासिक कारण भी हैं।सरदार बल्लभ भाई पटेल ने आज़ादी के बाद 500 से अधिक छोटी बड़ी रियासतों का भारत संघ में सफलता पूर्वक विलय तो कर दिया लेकिन तत्कालीन केंद्र सरकार इन विरासतों का तार्किक राज्यों के रूप में पुनर्गठन नही कर पाई।पॉन्डिचेरी केंद्र शासित प्रदेश इसका बेहतरीन उद्धारण है जो 3 राज्यों के अंतर्गत भौगोलिक रूप से विघटित होते हुए भी एक ही इकाई है।विरासतों का भौगोलिक,सामाजिक,सांस्कृतिक,आर्थिक तत्वों के आधार पर पुनर्गठन न किया जाना, पृथक राज्यों की मांग के अंतहीन सिलसिले के रूप में आज हमारे समक्ष है।
   अतः अब समय आ गया है कि केंद्र सरकार।द्वितीय राज्य पुनर्गठन आयोग गठित करके लोगों की आकांक्षाओं,अपेक्षाओं, विकास में आर्थिक विषमताओं, भौगोलिक समानताओं, आदि के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन करें।प्रयास रहे कि कुछ अपवादों को छोड़कर भौगोलिक क्षेत्रफल का भी कोई सर्वसम्मत मानक तय कर लिया जाए।अच्छा होगा।देश को 50 राज्य इकाइयों में विभाजित कर दिया जाए।इन 50 राज्यों में इंद्रप्रस्थ राज्य भी अनिवार्य रूप से एक सुनियोजित राज्य इकाई के रूप में सामने आए।

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