पश्चिमी उत्तर प्रदेश का खादर क्षेत्र एक भौगोलिक एवं सांस्कृतिक इकाई है. इस क्षेत्र की अपनी विविध संस्कृति है.उपजाऊ मिटटी के लिए सारी दुनिया के चुनिन्दा क्षेत्रों में यह शामिल है.वैसे तो हम दिल्ली से लेकर यमुना नदी के उत्तर के विशाल मैदान में प्रवेश करने के स्थान पौंटा साहिब (हिमाचल प्रदेश) तक इसका अस्तित्व मान सकते है.इसमें मुख्यतः हम गंगा- यमुना के दोआब को शामिल करते है.लेकिन यमुना के तटों के सामानांतर खादर क्षेत्र की विशिष्टताएं अधिक स्पष्ट है. सांस्कृतिक रूप से धनी इस क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित किये जाने की आवश्यकता है, जो विलुप्त होती जा रही है..संगीत का विश्व प्रसिद्द किराना घराना इसी क्षेत्र की दें है लेकिन अपने जन्मस्थान कैराना से यह लगभग गायब हो चुका है. स्वांग परम्परा के लिए यह क्षेत्र विख्यात रहा है लेकिन इस विधा को सरंक्षण न मिलने के कारन यह विधा लगभग दम तोड़ चुकी है. रागिनी गायकी अभी तक जीवित है वह भी व्यक्तिगत प्रयासों से. वास्तव में अपनी समृद्ध संस्कृति होते हुवे भी इस क्षेत्र में अपनी संस्कृति के प्रति विशेष अनुराग का अभाव रहा है.यही कारण रहा है की इस क्षे...
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 13 जिलों को दिल्ली में मिलाकर इन्द्रप्रस्थ का निर्माण किया जाना इस सम्पूर्ण क्षेत्र के विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है..इस क्षेत्र की आकांक्षाओं की पूर्ति इस लक्ष्य को प्राप्त करके ही हो सकती है..